वैश्विक महामारी कोरोना के चलते देश में लॉकडाउन रहा. कमोबेश देश की अर्थव्यवस्था से लेकर सामाजिक जीवन तक हर पहलू में बदलाव देखा गया. लॉकडाउन तो खुल गया लेकिन कई सारे सवाल देश के सामने खड़े हो गए. ऐसे ही सवालों का जवाब संसद के मानसून सत्र में विपक्ष सरकार से लेना चाह रहा था. 14 सितंबर से चल रहे संसद के मानसून सत्र में हो हल्ला खींचतान सब कुछ देखने को मिला लेकिन सबसे महत्वपूर्ण रहा सरकार का विपक्ष के हर सवाल का जवाब. ऐसे ही कुछ सवालों और उनके जवाब हमने संसद से खोज कर आपके पास तक लाने की कोशिश की है.
1- लॉक डाउन में कितने मज़दूरों की जान गई, सरकार नही जानती, इसलिए मुवावजा नही
लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की मृत्यु भी संसद में विपक्ष के सवालों का हिस्सा बनी जिसके जवाब में केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने लोकसभा में 14 सितंबर को जवाब दिया था और बताया था कि उसके पास प्रवासी मजदूरों की मौत का आंकड़ा नहीं है. लॉकडाउन के दौरान कितने प्रवासी मजदूर अपने घर लौटे उसके राज्यवार आंकड़े उपलब्ध हैं. एक अन्य सवाल कि क्या प्रवासी मजदूरों की मौत के बाद पीड़ित परिवारों को कोई मुआवजा या आर्थिक मदद दी गई है? तो इस पर भी केंद्र सरकार ने कहा कि जब मौत के आंकड़े ही नहीं है तो मुआवजा का सवाल ही नहीं उठता. सरकार के इस जवाब की भी पक्ष ने जमकर आलोचना की.
2- हैल्थ वर्कर्स की मौत का डेटा सरकार नही दे पाई
15 सितंबर को विपक्ष की ओर से राज्यसभा में सवाल किया गया कि क्या हेल्थ केयर स्टाफ यानी डॉक्टर, नर्स, सपोर्ट स्टाफ और आशा वर्कर्स जो कोरोना से संक्रमित हुए या जिनकी मौतें हुई हैं, इनका आंकड़ा सरकार के पास है?

सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि केंद्रीय स्तर पर इस तरह का कोई डाटा नहीं रखा जाता. यह राज्य की जिम्मेदारी है. हालांकि “प्रधानमंत्री गरीब कल्याण बीमा पैकेज” के तहत राहत पाने बालों का डेटाबेस राष्ट्रीय स्तर पर बनाया गया है.
3- नेताओं के जेल में होने संबंधी सीपीआई के जवाब में सरकार की ना
16 सितंबर को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने सवाल किया कि कितने नेता जेल में है, क्या सरकार के पास इसका आंकड़ा है?
सीपीआई सांसद के सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि यह जानकारी एनसीआरबी ब्यूरो द्वारा तैयार नहीं की गई है.

5-कोरोना के कारण सफ़ाई कर्मियों की मौत के संख्या से सरकार बेखबर
सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय से 16 सितंबर को सवाल दागा गया कि महामारी के दौरान कितने सफाई कर्मचारियों की मौत अस्पतालों में सफाई और सुरक्षा की कमी के कारण हुई,क्या उसका कोई आंकड़ा है?
इस सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि अस्पताल और डिस्पेंसरी राज्य का विषय है. केंद्र सरकार की तरफ से कोरोना महामारी के दौरान सफाई कर्मचारियों की मौत के बारे में कोई डाटा तैयार नहीं किया गया है.

6- देश में प्लाज्मा बैंकों की संख्या से सरकार अनजान
एक अन्य सांसद ने सवाल पूछा कि क्या सरकार देश में प्लाज्मा बैंकों की संख्या बता सकती है? इसके जवाब में स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने बताया कि देश में कोरोना मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी देने के लिए कितने प्लाज्मा बैंक चल रहे हैं इसका कोई डेटाबेस नहीं रखा गया है. राज्यों ने ऐसे बैंक स्थापित करने के लिए पहल की है. केंद्र को इनकी संख्या की जानकारी नहीं है.

6-फ्रंटलाइन कोरोना योद्धा पुलिस कर्मियों की मौत का आंकड़ा भी सरकार नही जानती
गृह मंत्रालय से 15 सितंबर को देश में कोरोना के कारण जान गंवाने वाले पुलिसकर्मियों का डाटा मांगा गया जिस पर सरकार का जवाब ना था. सरकार ने कहा कि ऐसा डाटा उनके पास नहीं है. हां, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आइटीबीपी, एनएसजी, एसएसबी और एआर एस जैसे बलों के जवानों की मौत का आंकड़ा सरकार के पास है.

7- छोटे उद्योग धंधों की बंदी के बारे में सरकार को नहीं पता
कोरोना के कारण नौकरियों और छोटे उद्योग धंधों की बंदी पर सरकार को जानकारी नहीं है. राज्यसभा में केंद्र सरकार ने जानकारी दी थी कि लघु और मध्यम उद्योगों में कोरोना काल में गई नौकरियों के आंकड़ों के बारे में सरकार ने कोई स्टडी नहीं की है. ना ही कोरोना का इन उद्योगों पर क्या प्रभाव हुआ इसके बारे में कोई जानकारी है.

8- किसानों की आत्महत्या के बारे में सरकार का जवाब ना
शनिवार 21 सितंबर को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया ने गृह मंत्रालय से किसानों की आत्महत्या संबंधित सवाल किया. उन्होंने पूछा कि “क्या नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने किसानों की आत्महत्या के कारणों की डिटेल्स निकालने का काम छोड़ दिया है”?
पीएल पुनिया के सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि “एनसीआरबी ने कई बार राज्यों से किसानों और खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या की सूचनाएं मांगी लेकिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से शुन्य आंकड़े दिए गए. राज्यों ने अन्य पेशे के लोगों में आत्महत्या करने वालों की संख्या तो बताई पर किसानों और खेतिहर मजदूरों के बारे में नहीं बताया. इस वजह से कृषि क्षेत्र में आत्महत्या की संख्या और कारणों की पुष्टि ना होने के कारण उनके आंकड़े प्रकाशित नहीं किए जा सके.

केंद्र सरकार को संसद में इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब के कारण आम जनता और विपक्ष दोनों की ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है.
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